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मंगलवार, 12 जनवरी 2010

ओ मन मोहना !!!



मन मोहना !,
भोर हुई !
फिर क्यों बंद है तेरे द्वार ,
जिस में सपने मेरे हजार

तुम नव किरणों के संग हो लो ,
तू अब अपना द्वार खोलो ,
मन मोहना !

मै हूँ तेरी मोहनी
सुन रे ! अपने प्रेम को
मै ही हूँ , तेरी रागिनी
फिर क्यों ?
भिगोये मेरे नयनों को ,

मन मोहना !
भोर हुई !
फिर क्यों बंद है तेरे द्वार ,
जिसमे मेरे सपने हजार !!!!!!!