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रविवार, 16 जनवरी 2011

हे कृष्ण !!!!


ये ख्वाब है
या हकीकत !
शब्द भी खामोश हो
छुप गए है कही
शायद !

उन्हें भी डर है
टूटने का
तेरी डांट से ,
अगर ये ख्वाब भी हो
तो भी मुझे छोड़ देना
ख्वाब में ...
जगाना नही

पूरी जिन्दगी ......
यूँही तेरे सजदे के
ख्वाब में ...
जीना चाहती हूँ ...!!!

--::साधना ::--

2 टिप्पणियाँ:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

पूरी जिन्दगी ......
यूँही तेरे सजदे के
ख्वाब में ...
जीना चाहती हूँ ...!!!
waah

हरीश भट्ट ने कहा…

bahut khoobsurat likhti hain aap
shubhkamnae

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