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बुधवार, 19 जनवरी 2011

देखो न !!!!


देखो न !
धड़कने बढ रही है
सांसे तेज हो रही है
ऑंखें बंद हो रही है
मै शिथिल पड़ रही हूँ

ये कैसा डोर है
जो मुझ तक
तेरी हर आहट
को पहुंचा जाती है

ये कौन सा बंधन है
मै तो मुर्ख हूँ
तू तो ज्ञानी है
मुझे समझा दो न ..!!!

साधना ::--

10 टिप्पणियाँ:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

aahat jo aati hai
wah prabhu ki hai
bas suno
phir gyaan ka srot hi srot

रश्मि प्रभा... ने कहा…

ise mail karo vatvriksh ke liye

सदा ने कहा…

बहुत ही सुन्‍दर भाव ।

mridula pradhan ने कहा…

khoobsurat andaz.

Amit Chandra ने कहा…

rishto ko anam hi rahne de to achchha hai. naam ke rishte bahut dard dete hai. sunder rachna.

Kunwar Kusumesh ने कहा…

कुछ रिश्ते बिना नाम के ही अच्छे और मजबूत होते हैं..

Nirantar ने कहा…

Reply to you nicely written poem:

कौन ज्ञानी कौन मूर्ख,कोई नहीं जानता

कौन
ज्ञानी कौन मूर्ख
कोई नहीं जानता
जो ज्ञानी किसी
के लिए
मूर्ख उसे दूसरा कहता
किस्मत से लोग बंधन
में बंधते
इंतज़ार किसी का
करते
याद कर तड़पते
हर आहट से
चौंकते
क्यों किस्म और कैसा
पूछते
अपने दिल से पूछ लो
हकीकत जान लो
हाँ करे तो जोड़ लो
ना करे तो छोड़ दो
निरंतर सवालों का
जवाब ना ढूंढा करो
अपने पर ऐतबार
खुदा पर यकीन
रखा करो
21-01-2011

Nirantar ने कहा…

Edited version of my earlier writing:
कौन ज्ञानी? कौन मूर्ख?कोई नहीं जानता

कौन
ज्ञानी कौन मूर्ख
कोई नहीं जानता
जो ज्ञानी किसी
के लिए
मूर्ख उसे दूसरे
कहते
क्यों किसी ज्ञानी
को ढूंढते
बंधन में बंधने का
कारण पूछते
किस्मत से लोग बंधन
में बंधते
इंतज़ार किसी का
करते
याद कर तड़पते
हर आहट से
चौंकते
क्यों किस्म और
कैसा पूछते
अपने दिल से पूछ लो
हकीकत जान लो
हाँ करे तो जोड़ लो
ना करे तो छोड़ दो
निरंतर सवालों का
जवाब ना ढूंढा करो
अपने पर ऐतबार
खुदा पर यकीन
रखा करो
21-01-2011

निर्मला कपिला ने कहा…

kuch rishton me samajhaane jaisee baat nahee hotee khud hee samajh aa jaataa hai| badhaaI is racanaa ke liye|

Anupama Tripathi ने कहा…

छोटी सी -बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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