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रविवार, 30 जनवरी 2011

क्या तुम्हे पता है .... ?


देखा तुझे तो ऐसा लगा
तुम से भी खूबसूरत
तुम्हारा अंदाज़ है !
कहते हो सम्भालो
कैसे सम्भालूँ मैं ,
अब ,तुम ही बता दो ?
इसी अदा पे तो मर-मिटी थी मैं
यही तो ,सदियों पुराना राज़ है..
क्या तुम्हे पता है .... ?

साधना ::---:

17 टिप्पणियाँ:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

bahut sundar

सदा ने कहा…

बेहतरीन ।

बेनामी ने कहा…

आकर्षक शीर्षक, मनमोहक ब्लॉग और प्रशंसनीय प्रस्तुति - बधाई

डॉ० डंडा लखनवी ने कहा…

अति सुन्दर कलाम! नव लेखन को प्रणाम एवं बधाई!
कृपया बसंत पर एक दोहा पढ़िए......
==============================
शहरीपन ज्यों-ज्यों बढ़ा, हुआ वनों का अंत।
गमलों में बैठा मिला, सिकुड़ा हुआ बसंत॥
सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी

amar jeet ने कहा…

अच्छी सुंदर रचना
बसंत पंचमी की शुभकामनाये

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

आपकी रचना वाकई तारीफ के काबिल है

Unknown ने कहा…

इसी अदा पे तो मर-मिटी थी मैं
यही तो ,सदियों पुराना राज़ है..
क्या तुम्हे पता है .... ?
waah kya ada hai...badiya hai ji

amrendra "amar" ने कहा…

Waah Sunder rachna......aur blog bhi bahut sunder hai

Dinesh pareek ने कहा…

शुभकामना है कि आपका ये प्रयास सफलता के नित नये कीर्तिमान स्थापित करे । धन्यवाद...
आपका ब्लॉग अच्छा है |

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RAMESH SHARMA ने कहा…

Bahoot Khoob Likhti Hai aap....

RAMESH SHARMA ने कहा…

Bahoot Khoob Likhti Hai aap....

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

कल 14/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

Vandana Ramasingh ने कहा…

वाह बहुत सुन्दर

Madhuresh ने कहा…

बहुत खूब!

Rewa Tibrewal ने कहा…

wah....very nicee lines...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूब

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" ने कहा…

behtarin...sambhalna muskil hai sadar badhayee aaur amantran ke sath

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