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बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

बसंत ऋतु आये ...!!!



हे री पाखी !
बसंत ऋतु आये
कैसे उन्हें बतलाये
वो है ऐसे बुद्धू,समझ न पाये !

मैं इतराती फिरू बावरी,
मद मस्त मादक सुगंध से भरी,
आलिंगन कर.....अब कैसे समझाये
बसंत ऋतु आये !

कंगन भी खनकाये,
पायल भी छंकाये,
पाती लिख भिजवाये
फिर भी वो समझ न पाये !

हे री पाखी !!
खिले सरसों के फूल,
बसंती हवा उड़ाए धुल,
सब देख हृदय में उठे शूल !

न कोयल की बोली,
न फागुन की होली,
कछु न सुहाये !
हे री पाखी! बसंत ऋतु आये !

अब कैसे करू इशारा,
तू ही लगे है मुझे प्यारा,
वो है ऐसे .......
न समझे कौनो इशारा !

हे री पाखी ! अब तो बैरन भई नींद,
व्याकुल हुए प्राण,
अब कौन सा छेडू तान !

हे री पाखी !
अब तू ही बता,
सब कर अब मनहारी
क्या मै करू... उन संग बलहारी.....???

साधना ::--

21 टिप्पणियाँ:

mridula pradhan ने कहा…

bahut sundar hai lekin dark background ke karan padhne men dikkat ho rahi thi.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

न कोयल की बोली,
न फागुन की होली,
कछु न सुहाये !
हे री पाखी! बसंत ऋतु आये
bahut achhi rachna ... wapas chali gai bina mile?

सदा ने कहा…

वाह ...बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ।

vinodbissa ने कहा…

shandar rachana .....shubhkamanayen

Unknown ने कहा…

very beautiful...Parag :)

ZEAL ने कहा…

उनको बुद्धू मत समझिये । वे सब समझते हैं । आपको तड़पा कर वे स्वयं वसंत का मज़ा लेते हैं । एक बार तडपाना सीख लीजिये , फिर वसंत का असली आनंद लीजिये । प्रेम में प्रिय का तड़पना ही प्रेम की पूर्णता का एहसास कराता है ।

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द| धन्यवाद|

Kunwar Kusumesh ने कहा…

वासंती खुशबू बिखेरती सुन्दर कविता.

Udan Tashtari ने कहा…

सुन्दर रचना.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!

vijay kumar sappatti ने कहा…

bahut hi pyaari rachna .. dil me basti hui .. basant ki shbhkaamanye ..

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मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
"""" इस कविता का लिंक है ::::
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
विजय

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द
रंगों का त्यौहार बहुत मुबारक हो आपको और आपके परिवार को|
कई दिनों व्यस्त होने के कारण  ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

amrendra "amar" ने कहा…

वाह ...बहुत ही सुन्‍दर

Aryan ने कहा…

bahut khoob...sir ji.!

बेनामी ने कहा…

"अब कैसे करू इशारा,
तू ही लगे है मुझे प्यारा,
वो है ऐसे .......
न समझे कौनो इशारा !"

बहुत खूब

somali ने कहा…

bahut sundar abhivyakti mam

Asha Joglekar ने कहा…

ये वसंत आपको कितना सता रहा है । जल्द ही आप के पिया आयें और मधुर मिलन के गीत होठों पर आये । सुंदर प्यारी कविता ।

अनुपमा पाठक ने कहा…

सुन्दर रचना!

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…






आदरणीया साधना जी
सस्नेहाभिवादन !


कोमल भावों के साथ सुंदर गीत लिखा है आपने…
हे री पाखी !!
खिले सरसों के फूल,
बसंती हवा उड़ाए धुल,
सब देख हृदय में उठे शूल !


वाह वाऽऽह्…! बसंत साकार हो उठा… आभार !

समय मिले तो निम्नांकित लिंक पर मेरी बसंत रचना अवश्य पढ़ें-
प्यारो न्यारो ये बसंत है …


पुनः मनभावन रचना के लिए
बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

.




आपकी नई पोस्ट की भी प्रतीक्षा रहेगी…

vsdk creation and collection ने कहा…

sach.... mann ko chhu gayi

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