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ऐसा क्यों हो रहा है
न चाहते हुए भी आँखे
क्यों भर जा रहे है
इतने सारे सवालो का
गुच्छा क्यों उमड़ रहे है
इतने सारे सवालो का
जबाब कहाँ से तलाशू
ये सारी चीजे मुझे क्यों
तड़पा रहे है
इन सारे सवालो का
जबाब किससे माँगू
कौन देगा मुझे
मै नहीं समझ पा रही हूँ
ये क्या हमारी और
तेरी दुनिया से अलग है !
शायद !
वो एक अलग ही दुनिया है
जहाँ हमारी तेरी वश में नहीं है
वो अपनी बातें खुद करते है
उन्हें हमारी इजाज़त
की जरूरत नहीं होता है
इन्हें तर्क से ....
नहीं समझाया जा सकता है
शायद ! इसे ही रूह कहते हैं ...
जो सिर्फ महसूस कर सकते है
क्या इसे कभी समझ भी सकते
या बिना समझे ही ......!!!!