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शनिवार, 7 जनवरी 2012

main गृहिणी हूँ !


मैं  गृहिणी हूँ !

एक समय ऐसा आता है

जब मैं , बिलकुल अकेली हो जाती हूँ

मुझे, किसी की जरूरत नहीं होती है

सब, अपने अपने में वयस्थ है

मेरे लिए किसी के पास समय ही नहीं

मैं  तो अभी भी,

सब का ख्याल उतना ही रखती हूँ

जितना पहले रखती थी .

मुझे तो अभी भी,

पति की टाइ और शर्ट मैचिंग है या नही

दिखा करती है .

बेटे ने बाल बनया,

पीछे का एक बाल खड़ा है

अपने आप मेरी हाथ उस तक पहुँचती है

और उसे सराहने लगती है

पर उन्हें क्यों नहीं दिखती है

मेरी सूजी हुई आँखें

तू रात में सोई नहीं क्या ?

मैं  किसी को दिखती नहीं हूँ

मैं  गृहिणी हूँ !

रोज उनके पास ही रहती हूँ

सबसे करीब!

उनका हर ख्याल रखती हूँ

छोटी से छोटी  बड़ी से बड़ी

इतना पास होते हुए भी,

उन्हें नहीं दीखता

मैं  कल क्या थी,

और आज क्या हूँ .

सब अपने में व्यस्त है

सुबह से उठ सब का ख्याल रख.....

सब अपने अपने में व्यस्त

घर खाली.....

और ...

अकेली मैं  कही थकी हुई ,

जा बैठती हूँ

चिंतन करती हूँ

मैं  क्या हूँ ?

मैं  जननी हूँ ,

मैं  बेटी हूँ ,

मैं  पतनी हूँ ,

मैं  माँ हूँ पर मै ?

मैं  क्या हूँ ?

मेरी पहचान क्या है ?

मेरा अस्तित्व क्या है?

बस इतना की मैं  गृहिणी हूँ !

फिर उठ !

सब आते ही होंगे

सोच उनकी खुशियों की तैयारीमें जुट जाती हूँ

मैं !!!! ,

क्योकि मैं  गृहिणी हूँ !!!!


.......साधना