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गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

फिर भी चलता जा रे तू बटोही ...!!!!


उड़ने की चाहत ने ।!
फिर से लगाई पंख !!
कई बार कटे निर्मोही ,
फिर भी चलता जा रे तू बटोही !!

रुकना तेरा काम नहीं !
झुकना तेरा धाम नहीं !!
लहू-लुहान हुए निर्मोही ,
फिर भी चलता जा रे तू बटोही !!

एक दिन मंज़िल आएगा !
तू भी गगन को छू पायेगा !!
थक कर भी रुक न निर्मोही ,
फिर भी चलता जा रे तू बटोही !!

अपनी ताकत को पहचान !
अपनी मस्तिष्क को दे ज्ञान !!
राह पड़ी जंजीरों को तोड़ निर्मोही ,
फिर भी चलता चल रे तू बटोही ,फिर भी चलता चल !!

..........साधना सिंह

5 टिप्पणियाँ:

संजय भास्‍कर ने कहा…

किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

Desk Of Kunwar Aayesnteen @ Spirtuality ने कहा…

बटोही ने चलना स्वीकार किया ....
प्रेरक भाव कि प्रस्तुति के लिए .... आभार....

kshama ने कहा…

Bahut sundar..ek geet yaad aa gaya," chal,chal re naujawan.."

रश्मि प्रभा... ने कहा…

एक दिन मंज़िल आएगा !
तू भी गगन को छू पायेगा !!
थक कर भी रुक न निर्मोही ,
फिर भी चलता जा रे तू बटोही !!
zarur aayegi manzil ...

अनुपमा पाठक ने कहा…

सुंदर!

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