RSS

शनिवार, 14 दिसंबर 2013

पथिक की तलाश में ....!!!!

एक पंछी उड़ी पथिक की तलाश में भटक रही थी बगिया बगिया देख पथिक का वह ठिकाना रुकी वहाँ ......
करने लगी रोज़ आना जाना एक दिन बगिया का मालिक आया देखा उसका रोज़ का आना जाना यह देख ,उसका मन ललचाया
उसने एक जाल बिछया पंछी सब समझ रही थी फिर भी पथिक की आश में करती रही वह आना जाना
एक दीन ऐसा जाल फेका पंछी हो गई लहू लूहान दामन समेट भागी वो भटक रही है .... देख रही है तेरी आश ओ पथिक.... बचा ले अब मेरी लाज !!!!

5 टिप्पणियाँ:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
पोस्ट का लिंक कल सुबह 5 बजे ही खुलेगा।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (15-12-13) को "नीड़ का पंथ दिखाएँ" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1462 पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (15-12-13) को "नीड़ का पंथ दिखाएँ" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1462 पर भी होगी!

कौशल लाल ने कहा…

बहुत सुन्दर ....

Onkar ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति

Shivam Mishra ने कहा…

Nice Post:- HindiSocial

एक टिप्पणी भेजें