ये छोटी सी मेरी कविता मेरी भावनाओं पर
आधारित....कैसी लगी जरूर बतायें ....
मेरा-तेरा ,जात-पात,
धर्म-अधर्म सब है मिथ्या
तू इस अंधकार से निकल ,
क्या लाया था और क्या ले जायेगा तू
सत्य को पहचान .
यह जग ही है
अंधकार का ज्ञान ,
इंसानों अब रुक जा तू
धन, दौलत, माकन ,
ये सब है
मिथ्या का शान ,
कुछ भी नहीं है तेरा
रिस्ते साथी दोस्त
सब छोर चलेंगे एक दिन
ऐ इंसानों ....
सत्य को पहचानो
छोर ! इस जग का माया जाल
कर तू ज्ञान और भक्ति का दान
सब जानते हुए भी
फिर क्यों ?
बना हुआ है तू अंजान !!!!!!
.......साधना
अगर हिंदी कि वर्तनी में कोई गलती हो तो उसके लिए क्षमा चाहती हूँ क्यों कि यहाँ हिंदी टाइपिंग में थोरी मुश्किल होती हैं ....