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गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

फिर भी चलता जा रे तू बटोही ...!!!!


उड़ने की चाहत ने ।!
फिर से लगाई पंख !!
कई बार कटे निर्मोही ,
फिर भी चलता जा रे तू बटोही !!

रुकना तेरा काम नहीं !
झुकना तेरा धाम नहीं !!
लहू-लुहान हुए निर्मोही ,
फिर भी चलता जा रे तू बटोही !!

एक दिन मंज़िल आएगा !
तू भी गगन को छू पायेगा !!
थक कर भी रुक न निर्मोही ,
फिर भी चलता जा रे तू बटोही !!

अपनी ताकत को पहचान !
अपनी मस्तिष्क को दे ज्ञान !!
राह पड़ी जंजीरों को तोड़ निर्मोही ,
फिर भी चलता चल रे तू बटोही ,फिर भी चलता चल !!

..........साधना सिंह