हे री पाखी !
बसंत ऋतु आये
कैसे उन्हें बतलाये
वो है ऐसे बुद्धू,समझ न पाये !
मैं इतराती फिरू बावरी,
मद मस्त मादक सुगंध से भरी,
आलिंगन कर.....अब कैसे समझाये
बसंत ऋतु आये !
कंगन भी खनकाये,
पायल भी छंकाये,
पाती लिख भिजवाये
फिर भी वो समझ न पाये !
हे री पाखी !!
खिले सरसों के फूल,
बसंती हवा उड़ाए धुल,
सब देख हृदय में उठे शूल !
न कोयल की बोली,
न फागुन की होली,
कछु न सुहाये !
हे री पाखी! बसंत ऋतु आये !
अब कैसे करू इशारा,
तू ही लगे है मुझे प्यारा,
वो है ऐसे .......
न समझे कौनो इशारा !
हे री पाखी ! अब तो बैरन भई नींद,
व्याकुल हुए प्राण,
अब कौन सा छेडू तान !
हे री पाखी !
अब तू ही बता,
सब कर अब मनहारी
क्या मै करू... उन संग बलहारी.....???
साधना ::--