हे री पाखी !
बसंत ऋतु आये
कैसे उन्हें बतलाये
वो है ऐसे बुद्धू,समझ न पाये !
मैं इतराती फिरू बावरी,
मद मस्त मादक सुगंध से भरी,
आलिंगन कर.....अब कैसे समझाये
बसंत ऋतु आये !
कंगन भी खनकाये,
पायल भी छंकाये,
पाती लिख भिजवाये
फिर भी वो समझ न पाये !
हे री पाखी !!
खिले सरसों के फूल,
बसंती हवा उड़ाए धुल,
सब देख हृदय में उठे शूल !
न कोयल की बोली,
न फागुन की होली,
कछु न सुहाये !
हे री पाखी! बसंत ऋतु आये !
अब कैसे करू इशारा,
तू ही लगे है मुझे प्यारा,
वो है ऐसे .......
न समझे कौनो इशारा !
हे री पाखी ! अब तो बैरन भई नींद,
व्याकुल हुए प्राण,
अब कौन सा छेडू तान !
हे री पाखी !
अब तू ही बता,
सब कर अब मनहारी
क्या मै करू... उन संग बलहारी.....???
साधना ::--
21 टिप्पणियाँ:
bahut sundar hai lekin dark background ke karan padhne men dikkat ho rahi thi.
न कोयल की बोली,
न फागुन की होली,
कछु न सुहाये !
हे री पाखी! बसंत ऋतु आये
bahut achhi rachna ... wapas chali gai bina mile?
वाह ...बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ।
shandar rachana .....shubhkamanayen
very beautiful...Parag :)
उनको बुद्धू मत समझिये । वे सब समझते हैं । आपको तड़पा कर वे स्वयं वसंत का मज़ा लेते हैं । एक बार तडपाना सीख लीजिये , फिर वसंत का असली आनंद लीजिये । प्रेम में प्रिय का तड़पना ही प्रेम की पूर्णता का एहसास कराता है ।
बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द| धन्यवाद|
वासंती खुशबू बिखेरती सुन्दर कविता.
सुन्दर रचना.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
bahut hi pyaari rachna .. dil me basti hui .. basant ki shbhkaamanye ..
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मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
"""" इस कविता का लिंक है ::::
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
विजय
बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द
रंगों का त्यौहार बहुत मुबारक हो आपको और आपके परिवार को|
कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
वाह ...बहुत ही सुन्दर
bahut khoob...sir ji.!
"अब कैसे करू इशारा,
तू ही लगे है मुझे प्यारा,
वो है ऐसे .......
न समझे कौनो इशारा !"
बहुत खूब
bahut sundar abhivyakti mam
ये वसंत आपको कितना सता रहा है । जल्द ही आप के पिया आयें और मधुर मिलन के गीत होठों पर आये । सुंदर प्यारी कविता ।
सुन्दर रचना!
♥
आदरणीया साधना जी
सस्नेहाभिवादन !
कोमल भावों के साथ सुंदर गीत लिखा है आपने…
हे री पाखी !!
खिले सरसों के फूल,
बसंती हवा उड़ाए धुल,
सब देख हृदय में उठे शूल !
वाह वाऽऽह्…! बसंत साकार हो उठा… आभार !
समय मिले तो निम्नांकित लिंक पर मेरी बसंत रचना अवश्य पढ़ें-
प्यारो न्यारो ये बसंत है …
पुनः मनभावन रचना के लिए
बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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आपकी नई पोस्ट की भी प्रतीक्षा रहेगी…
sach.... mann ko chhu gayi
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