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बुधवार, 20 अक्टूबर 2010

एक अहसास..!!!


ऐसा क्यों हो रहा है
न चाहते हुए भी आँखे
क्यों भर जा रहे है
इतने सारे सवालो का
गुच्छा क्यों उमड़ रहे है
इतने सारे सवालो का
जबाब कहाँ से तलाशू
ये सारी चीजे मुझे क्यों
तड़पा रहे है
इन सारे सवालो का
जबाब किससे माँगू
कौन देगा मुझे
मै नहीं समझ पा रही हूँ
ये क्या हमारी और
तेरी दुनिया से अलग है !
शायद !
वो एक अलग ही दुनिया है
जहाँ हमारी तेरी वश में नहीं है
वो अपनी बातें खुद करते है
उन्हें हमारी इजाज़त
की जरूरत नहीं होता है
इन्हें तर्क से ....
नहीं समझाया जा सकता है
शायद ! इसे ही रूह कहते हैं ...
जो सिर्फ महसूस कर सकते है
क्या इसे कभी समझ भी सकते
या बिना समझे ही ......!!!!

19 टिप्पणियाँ:

M VERMA ने कहा…

बेहतरीन अभिव्यक्ति

निर्झर'नीर ने कहा…

आपका ये ख्याल बहुत अच्छा लगा और जो तस्वीरें आपने लगायी है मन मोहती है

स्वाति ने कहा…

हमारा छद्म शरीर हीं वशीभूत है अनगिनत दायरों का...आत्मा तो मुक्त है प्रेम की निर्झरनी में गोते लगाने को...मन मोह लिया रचना ने...

vidya ने कहा…

सुन्दर रूहानी प्रस्तुति..
शुभकामनाएँ.

Madhuresh ने कहा…

वो अपनी बातें खुद करते है, उन्हें हमारी इजाज़त की जरूरत नहीं ..!

अंतर की आवाज़, बहुत अच्छी रचना!

Nidhi ने कहा…

भावों को ..रूह को परिलक्षित करती रचना .

सदा ने कहा…

अनुपम भाव संयोजन लिये बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

सुन्दर ...
मनमुग्ध करती रचना....

रश्मि शर्मा ने कहा…

बहुत खूबसूरत....

Unknown ने कहा…

आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद ...मै माफी चाहूंगी मै रेगुलर ब्लोगर नहीं होने के कारण मै आप सभी का कमेंट्स देख नहीं पाई आज देखीं ...यसवंत आभार आपका ... आपने नए पुराने हलचल में ..मेरी रचनाओ को भी स्थान देने योग्य समझे !!!!!!!

Unknown ने कहा…

धन्यवाद..!!!

Unknown ने कहा…

धन्यवाद!

Unknown ने कहा…

धन्यवाद !!!!

Unknown ने कहा…

धन्यवाद !!!!

Unknown ने कहा…

धन्यवाद !!!

Unknown ने कहा…

धन्यवाद !!!!

Unknown ने कहा…

धन्यवाद !!!!!!!!

Unknown ने कहा…

धन्यवाद !!!

Unknown ने कहा…

धन्यवाद !!!

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