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रविवार, 9 सितंबर 2012

साई मोरे बाबा एक ऐसी पारिवारिक फिल्म , जिसमें आध्यात्मिक आत्मा है .


साई मोरे बाबा एक ऐसी पारिवारिक फिल्म , जिसमें आध्यात्मिक आत्मा है . जन्म से लेकर मृत्यु तक - हम जो चाहते हैं , उससे अलग रास्ते 
हमें मिलते हैं और शुरू होती है पहले तादात्म्य बैठने की कोशिश , सहनशीलता का प्रयास और फिर हार महसूस करना . हार , जहाँ सारे रास्ते 
बन्द नज़र आते हैं , तब अँधेरे को चीरता साई का स्पर्श वह शक्ति देता है , जो जीने के साथ साथ सामर्थ्य बन जाता है
इस फिल्म में आम जीवन के सभी पहलू हैं . एक साधारण परिवार के सदस्यों का भी अपना सम्मान होता है , और साई उनके साथ ही होते हैं , जो सही 
का साथ देते हैं . दो परिवार का रिश्ता स्नेहिल ना हो तो जीवन को एक मौका देना चाहिए - बांधकर किसी के साथ जिया जा सकता है , ना ही यह सही
है ..... साई की सुरक्षा आगाह करती है कि खुद को जानो, मौका देने की भी एक सीमा होती है
कैसे ? यह रहस्य गहराता जा रहा होगा आपके अन्दर - जल्द ही साई अपने स्नेहिल सन्देश के साथ रुपहले परदे पर चमत्कारों के साथ होंगे
कथा , गीत, कलाकार , निर्देशन सब आपको बांधकर रखेंगे , इस फिल्म के गीतों से घर घर का आँगन सुवासित होगा और इस कहानी में बंधे 
कलाकारों की अदाकारी निर्णयात्मक सोच देगी ........

सोमवार, 6 अगस्त 2012

promo SAI MORE BABA

गुरुवार, 12 जुलाई 2012

" SAI MORE BABA " Full Title Song

सोमवार, 26 मार्च 2012

मात्री प्रेम !!!


कुछ अनुभव वक्त के साथ ही होते  है .... 
आज मेरा बेटा का  12th का exm ख़तम हुआ ....
घर आते ही मैंने बेटे को बोली ..
चलो भगवान को प्रणाम  करते है ...
हम दोनों  मंदिर के पास पहुचे , ..
हाथ जोड़ भगवान को प्रणाम कर रही थी 
और मेरे आँखों  से अश्रु की धार ऐसे बहने लगा .....
मानो ,बोल रहा हो आज मुझे नहीं रुकना बहने दो 
तब याद आया की हमलोग को 
खुशियाँ मिलने पर बाबूजी क्यों रोते थे ... 
उस समय समझ नहीं पाती थी ...
आज मैं  बाबूजी के जगह हूँ  ...
शायद ! इसे ही मात्री प्रेम कहते है ..!!!

रविवार, 25 मार्च 2012

मत हो तू उदास ..!!!!!


जीवन है ....
चलते  तो रहना ही है
इस रौशनी की
चकाचौंध में ,


शायद!
नज़र न आऊं तुझे
मै जो खड़ी हूँ ,अँधेरे में !
ध्यान से  देखना ,


मेरी रूहें ,मेरा साथ
पकड़ खड़ी हैं  तेरा हाथ
मत हो तू उदास
सदा  हूँ , मै तेरे पास ...!!!!!



मंगलवार, 20 मार्च 2012

मत पूछना.....!!!!

मत  पूछना
मै  कहाँ  खोई  हूँ 
पता  तो  तुम्हे  भी  है 
ज़माने  से  कह  कर, क्या  करुँगी  , 
अगर  तुम  सुनोगे , तो  कुछ  कहूँगी  ...!!!


मंगलवार, 13 मार्च 2012

my favorite....ghazal ...:-)

रविवार, 4 मार्च 2012

जिंदगी की राह में.....!!!!



जिंदगी की राह में ,थोड़ी  परेशान हो गई हूँ ।
चलती  हुई जिंदगी में, पानी की धार हो गई हूँ ।।


मंजिल तो पता है, पर रास्ते से अंजान हो गई हूँ ।
जो भी राह मिली , उसी पर  ढुलकती चली जा रही  हूँ   ।।


जितने भी  मिले राह में गढ़े ,सबको भरती चली गई हूँ ।
पर अब और कितने गढ़े मिलेंगे? यह सोच थोड़ी  घबडा गई हूँ ।।
  
आशाओं  की सोपान पर , बस चढ़ती  जा रही हूँ ।
कभी तो पहुंचुंगी  मंजिल पर  ,यह सोच ,बहती जा रही हूँ ।।


जिंदगी की राह में ,थोड़ी  परेशान हो गई हूँ ।
चलती  हुई जिंदगी में, पानी की धार हो गई हूँ ।।


सोमवार, 20 फ़रवरी 2012

नज़रिया ....!!!



       जब हमारा नजरिया सही हो ,तब हमें अहसास होता है की हम सब हीरों की खानों पर चल रहे है जो  अक्सर हमारे पैरो के निचे होते है ! हमें इसके लिए कही जाने की जरूरत नहीं है ! जरूरत है तो सिर्फ इसे पहचानने की .... आज मै आपलोगों को एक कहानी  सुनाती हूँ { आप लोग भी यह कहानी कहीं  पढ़े या सुने जरूर होंगे }.....
     
               अफ्रीका  में एक एक खुश और संतुष्ट किसान रहा करता था ! वह खुश था क्योकि  वह संतुष्ट था ! और संतुष्ट था इसलिए क्योकि वह खुश था .....! एक दिन उसके पास एक ज्ञानी व्यक्ति आया ,जिसने उसे हीरो की अहमियत और उनकी ताकत के बारेमे बताया ,ज्ञानी व्यक्ति ने कहाँ अगर तुम्हारे पास अंगूठे के जितना भी हिरा हो तो तुम अपना एक शहर खरीद सकते हो ,और अगर तुम्हारे पास मुठी के बराबर का हिरा हो तो तुम शायद  अपने देश के ही मालिक बन सकते हो ...... ऐसी बातें बता कर वह ज्ञानी चला गया ! उस रात  किसान बिलकुल ही नहीं सो सका !वह नाखुश  और असंतुष्ट हो गया था ! ....वह नाखुश था क्यों की वह असंतुष्ट था और असंतिष्ट था इसलिए वह नाखुश था ..!
          अगले दिन उसने अपने खेतों को बेचने का बंदोबस्त किया और हीरों की खोज में निकल पड़ा ..... पुरे अफ्रीका में वह घूमता रहा ,लेकिन कुछ न मिला सारे यूरोप का चक्कर लगाने के बाद भी उसकी खोज पूरी नहीं हुई ..! जब वह स्पेन पंहुचा तब तक वह भावनात्मक ,शारीरिक और आर्थिक कमी से टूट चूका था  ! उसका हिम्मत इतनी ज्यादा टूट गई थी की उसने बार्सिलोना नदी में कूद कर ख़ुदकुशी कर ली ...!!!
          उधर जिस व्यक्ति ने खेत ख़रीदे थे ,उसने नाहर के दुसरे किनारे पर सूरज की रोशनी जैसे ही एक पत्थर पर नजर पड़ी तो इन्द्रधनुष की तरह सात रंग जगमगा उठे ! उस वक्ती ने सोचा की यह पत्थर घर के बैठक में सजाने का काम आएगा और वह उसे उठा ले आया और घर में सजा दिया ! उसी दोपहर में ,वो ज्ञानी  व्यक्ति फिर वह आया ,उसकी नज़र उस जगमगाती पत्थर पर पड़ी ..तो उसने  पूछा की ,"क्या हाफिज वापस आ गया है ? तो नए मालिक ने जबाब दिया नहीं , लेकिन आप ऐसा क्यों पूछ रहे है ? तब गायनी व्यक्ति ने जबाब दिया ," वह सामने रखा पत्थर हिरा है " मै देखते ही पह्ता पहचान जाता   हूँ फिर नए मालिक ने कहाँ नहीं वह सिर्फ एक पत्थर है ,मैंने उसे नहर के पास से उठाया है चलिए मै आपको दिखता हूँ वहां ऐसे बहुत सारे पत्थर पड़े है !
             वे दोनों वह गए और पत्थर के नमूने उठा लाये और जाँच के लिए भेज दिए ! सचमुच में वो पत्थर हीरे ही थे ! उन्होंने पाया की उस खेत में दूर दूर तक हीरे दवे पड़े थे .....!!!

इस कहानी  से हम क्या सिखाते है ?
       
            जब लोग मौके को पहचान नहीं पाते है तो अवसर का खटखटाना उन्हें शोर लगता है .....एक मौका दुबारा नहीं खटखटाता ,दूसरा मौका अच्छा या बुरा हो सकता है , लेकिन वो नहीं होगा जो पहले था ... इसिलए सही समय पर सही फैसला  और सही नज़रिए को समझना बहुत अहमियत रखता है ....!!!!!

शनिवार, 7 जनवरी 2012

main गृहिणी हूँ !


मैं  गृहिणी हूँ !

एक समय ऐसा आता है

जब मैं , बिलकुल अकेली हो जाती हूँ

मुझे, किसी की जरूरत नहीं होती है

सब, अपने अपने में वयस्थ है

मेरे लिए किसी के पास समय ही नहीं

मैं  तो अभी भी,

सब का ख्याल उतना ही रखती हूँ

जितना पहले रखती थी .

मुझे तो अभी भी,

पति की टाइ और शर्ट मैचिंग है या नही

दिखा करती है .

बेटे ने बाल बनया,

पीछे का एक बाल खड़ा है

अपने आप मेरी हाथ उस तक पहुँचती है

और उसे सराहने लगती है

पर उन्हें क्यों नहीं दिखती है

मेरी सूजी हुई आँखें

तू रात में सोई नहीं क्या ?

मैं  किसी को दिखती नहीं हूँ

मैं  गृहिणी हूँ !

रोज उनके पास ही रहती हूँ

सबसे करीब!

उनका हर ख्याल रखती हूँ

छोटी से छोटी  बड़ी से बड़ी

इतना पास होते हुए भी,

उन्हें नहीं दीखता

मैं  कल क्या थी,

और आज क्या हूँ .

सब अपने में व्यस्त है

सुबह से उठ सब का ख्याल रख.....

सब अपने अपने में व्यस्त

घर खाली.....

और ...

अकेली मैं  कही थकी हुई ,

जा बैठती हूँ

चिंतन करती हूँ

मैं  क्या हूँ ?

मैं  जननी हूँ ,

मैं  बेटी हूँ ,

मैं  पतनी हूँ ,

मैं  माँ हूँ पर मै ?

मैं  क्या हूँ ?

मेरी पहचान क्या है ?

मेरा अस्तित्व क्या है?

बस इतना की मैं  गृहिणी हूँ !

फिर उठ !

सब आते ही होंगे

सोच उनकी खुशियों की तैयारीमें जुट जाती हूँ

मैं !!!! ,

क्योकि मैं  गृहिणी हूँ !!!!


.......साधना