जिंदगी की राह में ,थोड़ी परेशान हो गई हूँ ।
चलती हुई जिंदगी में, पानी की धार हो गई हूँ ।।
मंजिल तो पता है, पर रास्ते से अंजान हो गई हूँ ।
जो भी राह मिली , उसी पर ढुलकती चली जा रही हूँ ।।
जितने भी मिले राह में गढ़े ,सबको भरती चली गई हूँ ।
पर अब और कितने गढ़े मिलेंगे? यह सोच थोड़ी घबडा गई हूँ ।।
आशाओं की सोपान पर , बस चढ़ती जा रही हूँ ।
कभी तो पहुंचुंगी मंजिल पर ,यह सोच ,बहती जा रही हूँ ।।
जिंदगी की राह में ,थोड़ी परेशान हो गई हूँ ।
चलती हुई जिंदगी में, पानी की धार हो गई हूँ ।।
8 टिप्पणियाँ:
बहुत ही बढ़िया
सादर
sakaratmak bhav ...manzil zaroor milegi ...!!
परेशान हो तो अपनों की पहचान होगी
जितने गड्ढे भरे उतना अनुभव ... परेशानी से हटकर खुद पर नाज करो और फिर कदम उठाओ, दुनिया नाज करेगी
आशाओं की सोपान पर , बस चढ़ती जा रही हूँ ।
कभी तो पहुंचुंगी मंजिल पर ,यह सोच ,बहती जा रही हूँ ...
जीवन ऐसे ही चलता रहगे ... आशाओं का साथ बना रहे तो मंजिल आसान हो जाती है ...
bahut achchi lagi......
जिंदगी की राह में ,थोड़ी परेशान हो गई हूँ ।
चलती हुई जिंदगी में, पानी की धार हो गई हूँ ।।
बहुत ही अनुपम भाव संयोजन ...बेहतरीन प्रस्तुति ।
jindagi me pareshani aati rahti hai.......
behtareen prastuti........
पर उम्मीद की किरण
अब भी बाकी है
सांस
अब भी चल रही हैं
जब तक रहेगी जान
में जान
हार नहीं मानूंगा
मोहब्बत के खातिर
लड़ता रहूँगा
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