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गुरुवार, 30 दिसंबर 2010

इस बार मत भूलना .....!!!


सुनो न ..!
समंदर के पास चले ?
थक गये हो घर परिवार ,समाज
सब का फिक्र कर के
ये तो मुझे पता है ..
तुम हर फिक्र को धूएँ में
उड़ाते चले गए !
पर फिर भी ...
समंदर के सैर करते है
लहरों को गिनते है
बड़ो का मुखौटा उतार
बचपन को जीते है


चलो रेत का घर बनाते है
तुम अपना पॉंव रखो
मै रेत का ढेर रखती हूँ
नहीं रहने दो ..
जब रेत रख थप-थपाऊँगी
तुम्हे दर्द होगा
ये कैसे मै सह पाऊँगी
मै पॉंव रखती हूँ ,
पर नहीं ,
तुम भी तो मेरा दर्द नहीं सह पाते हो
रहने दो अपना अपना बनाते है
ऐसे भी तो ...

छोड़ो ,लहरों को गिनते है
देखे कौन कितना गिन पाते है
खामोश क्यों हो ?
ओह! समझ गई !
डरते हो न की कही आगे पीछे
न हो जाये ..
हाँ मुझे भी डर लग रहा है
कही हम आगे -पीछे हो
हाथ न छुट जाएँ


छोड़ो रहने दो !
पास पास बैठते है
सुख-दुःख बाँटते है
ओह ! ढंडी हवा ,
चादर !भूल गए ..?
ठीक ही हुआ भूल गये
इसी बहाने..
एक ही चादर ओढेंगे....
तुम्हारे और पास आ पाएंगे
अब क्या रेत और क्या लहरों को गिनना


अब तो सांसों से
सांसें मिलने लगी है
जिंदगी फिर से
लहरों पे उतरने लगी है
बहुत देर हुआ अब चलेंगे
फिर यही आकर मिलेंगे
पास- पास बैठ दुःख सुख बाँटेंगे ....
पर सुनो सुनो सुनो ...
इस बार मत भूलना .....!!!
.....साधना ::-

मंगलवार, 28 दिसंबर 2010

बुद्धू कुछ तो ....


एक खूबसूरत सा एहसास

बार बार आ रही है मेरे पास

एक गहरी साँस ले

एहसासों को बटोर

दामन से गठरी बांध

रख ली मै

अपने पास

अब ये मत कहना

क्यों रखी मै अपने पास

बुद्धू कुछ तो ......

समझ रखो अपने पास ...!!

......साधना::-

सोमवार, 20 दिसंबर 2010

संभल कर पांव रखना ....!!


सुनो न !

थोड़ा आहिस्ता चलो

संभल कर पांव रखना

धीरे - धीरे डर लगता है

कांच के ख्वाब है कहीं,

टूट के बिखर न जाएँ ...!!!

....साधना

रविवार, 12 दिसंबर 2010

सुनो न ! कुछ तुमसे है कहना...!!!


सुनो न !
कुछ तुमसे
है कहना
थोड़ा पास आना
थोड़ा और...
तुझे ले चलती हूँ
दूर गगन के छाँव में
जहाँ इस दुनियां की
कुछ भी साथ न हो
बस हम और तुम
आँखें बंद करना !
अपना हाथ
मेरे हाथ में देना
देखो, ठीक से
छोड़ना मत
ये लो ! आ गये
कितनी खुबसूरत
वादियाँ है
फिज़ा है
देखो !
हमारे पास आ रही है
न गम है
न आँसू है
बस हम-तुम
और हमारी रूहें
आँखें बंद रखना
अब तो.....
न जमीं रहा
न आसमां रहा
बस इश्क़ ही इश्क रहा ...!!!

आगे ......???
उफ़ आगे क्या
धड़ाम सा निचे गिरना
नींद का खुलना
और फिर वही मतलबी
दुनियां में आ जाना !!!!!

~~~~ साधना :-

बुधवार, 1 दिसंबर 2010

न जाने क्यों..!!!


तुमको जब जब देखी
खुदा नज़र आया !
आँखें जब भी बंद की
तेरा ही चेहरा नज़र आया !!

मेरी लिखी हर गीत पर
तू ही नज़र आया !
मेरी रूह को छूता हुआ भी
तू ही नज़र आया !!

मेरी मुस्कान की वज़ह में
भी तू ही नजर आया !
एक सुखद अहसास देने में
भी तू ही नज़र आया !!

जिंदगी की हर डगर पे बस तू
तू तू ही तू नज़र आया!
तुमको जब भी देखी न जाने क्यों?
तुम में ही खुदा नज़र आया!!
....साधना सिंह