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सोमवार, 20 दिसंबर 2010

संभल कर पांव रखना ....!!


सुनो न !

थोड़ा आहिस्ता चलो

संभल कर पांव रखना

धीरे - धीरे डर लगता है

कांच के ख्वाब है कहीं,

टूट के बिखर न जाएँ ...!!!

....साधना

9 टिप्पणियाँ:

निर्झर'नीर ने कहा…

चंद शब्द और अहसासों का सागर समेटे हुए ..यक़ीनन दाद की हक़दार है ये पंक्तियाँ
क़ुबूल करें

Suman Sinha ने कहा…

sambhal ker chalne per bhi kai baar khwaab toot jate hain ...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

kitne toote hain khwaab
ab aisa n ho
koi thes na lage
jara sambhal ke chalo

अनुपमा पाठक ने कहा…

ख्वाबों को सहेजते हुए...
सुन्दर शब्द रचना!

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

sadhna ji
chhoti si rachna me badi baat.
bahut hi achhi lagi aapki post.
poonam

amar jeet ने कहा…

साधना जी चंद शब्दों में आपने अपनी रचना के माध्यम से बहुत कुछ कह दिया .......

mridula pradhan ने कहा…

behad khoobsurat.

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत लाजवाब और उम्दा लिखा है......गहरी बात आसानी से कह दी आपने

Nidhi ने कहा…

ख्वाब जो टूट जाते हैं..बहुत तकलीफ देते है....काश...आपका कोई ख्वाब कभी न टूटे

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