सुनो न !
कुछ तुमसे
है कहना
थोड़ा पास आना
थोड़ा और...
तुझे ले चलती हूँ
दूर गगन के छाँव में
जहाँ इस दुनियां की
कुछ भी साथ न हो
बस हम और तुम
आँखें बंद करना !
अपना हाथ
मेरे हाथ में देना
देखो, ठीक से
छोड़ना मत
ये लो ! आ गये
कितनी खुबसूरत
वादियाँ है
फिज़ा है
देखो !
हमारे पास आ रही है
न गम है
न आँसू है
बस हम-तुम
और हमारी रूहें
आँखें बंद रखना
अब तो.....
न जमीं रहा
न आसमां रहा
बस इश्क़ ही इश्क रहा ...!!!
आगे ......???
उफ़ आगे क्या
धड़ाम सा निचे गिरना
नींद का खुलना
और फिर वही मतलबी
दुनियां में आ जाना !!!!!
~~~~ साधना :-
10 टिप्पणियाँ:
उफ़ आगे क्या
धड़ाम सा निचे गिरना
नींद का खुलना
और फिर वही मतलबी
दुनियां में आ जाना !!!!!
waah
climax सुन्दर है
हा हा हा ... इस मतलबी दुनियां से पिण्ड नहीं छूटेगा साधना ... आखिरकार जीना यहॉं मरना यहॉं .... बहुत ही खूबसूरत रचना है डुबो कर मारती है .... हा हा हा - नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''
Aisa lag raha tha ki sab kuch saamne ho raha hai.. ya hum khud hi ek kirdaar hon.. bahut khoob.
I admire your awesome thought very nicely composed.They are super worth commending.
सुन्दर कल्पना...
हर कोई देखता है ऐसे सपने .....
मगर ..सपना के साथ
हाथ का साथ होना ज़रूरी है /
truly brilliant..
keep writing......all the best
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बस इश्क ही इश्क रहे.....भला,ऐसे ख्वाब को देखते हुए कौन उठना चाहेगा
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